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13/01/2025

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विवाह से पहले झाँसी के अपने कमरे की गौरैयों-गिलहरियों को निहारते हुए सोचा करती थी कि अब ये सब कहाँ मिलेंगे? लेकिन यहाँ आकर आँखो में अपनी सुखद उपस्थिति दर्ज़ कराई इस घर के गौरी, डुग्गु, गुरु..... पाँच तोतों ने।  हालाँकि मुझे शुरुआत से ही पालतू जीवों / पंछियों के स्थान पर स्वतंत्र पँछी/ जीव प्रिय रहे हैं। संभवत: यही कारण है कि वर्षों से दो बादलों से सफ़ेद व नर्म खरगोश पालने की अपनी इच्छा को दबाती आई हूँ। जीवन में यदि कभी किसी बड़े से मैदान की मालकिन बनने में सफ़ल हुई तो अपने पशुओं व पौधों से भरे घर के सपनों को साकार करना चाहूँगी। जहाँ पँछी-पौधे स्वतंत्र विचरण कर सके व मेरे साथ से यदि उन्हें ऊब हो तो मुझे छोड़कर जा सके। तब तक के लिए ये ख़ाब "ख़ाब" ही सही। पालतू जीवों के प्रेम पर संदेह होता है कि ये सच में मुझसे प्रेम करते भी हैं या कोई विवशता है उनकी। जैसे Stockholm syndrome (SHS) होता है जिसमें अपहरण या उत्पीड़न के शिकार अपने सर्वाइवल के लिए अपने उत्पीड़क से ही लगाव विकसित कर लेते हैं। कई बार इन्हें ही पता नहीं होता कि इनका यह लगाव दरअसल लगाव न होकर एक तरह का कोपिंग...

11/01/2025

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जब तक कैलेंडर का निर्माण नहीं हुआ था, सब सही था। लेकिन जैसे ही कैलेंडर बना अब ईश्वर दिन विशेष पर लोगों के बाल काटने, धोने, नाखून काटने, कपड़े धोने, साबुन लगाने से नाराज़ होने लगे। जैसे ईश्वर के नाम पर इतना मज़ाक कम था तो ईश्वर ने या स्पष्ट कहें तो ईश्वर के नाम पर अपना वर्चस्व स्थापित करने वालों ने इन कामों के लिए भी अपनी सहूलियत के हिसाब से इसमें भी लिंग व वैवाहिक स्थिति के आधार पर ईश्वर के क्रोध का स्कोर कार्ड बनाया। जैसे कि मंगलवार के दिन किसी पुरुष के बाल धोने पर ईश्वर नाराज़ नहीं होते लेकिन जैसे ही आसमान में बैठकर लोगों के कर्म की बजाय बाथरूम में झाँकने वाले ईश्वर देखते हैं कि मंगलवार के दिन कोई स्त्री बाल धो रही है भड़क जाते हैं। यदि स्त्री अविवाहित है तब भी ईश्वर थोड़ी राहत देते हैं लेकिन यदि ईश्वर देखते हैं कि स्त्री विवाहित है और मंगलवार के दिन बाल धो रही है फ़िर तो उनके क्रोध की कोई सीमा ही नहीं रहती। अब आप सोच रहे होंगे कि ईश्वर को पता कैसे चलता है कि स्त्री विवाहित या अविवाहित है? तो भाई हमारे यहाँ निजी संपत्तियों क्षमा चाहूँगी स्त्रियों को दाएँ-बाएँ, आगे-पीछे से...

पिंजरे

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तुम्हारी आँखों में सपने हैं ऊँची उड़ानों के देखें तो मैंने भी हैं ख़ाब आसमानों के तुम्हारे पर उड़ने को बेकरार मगर बेकार हैं मेरे हौंसलों की जमीन में भी पड़ चुकी दरार है तुम्हारी आत्मा पर अपनाइयत् की चोट है और इधर मेरी किस्मत की नीयत में भी खोट है तुम बंधन में जन्मी तुम्हें बंधन में सुख मिलता है मुझ शाहीन की आँखों में ये पिंजरा बड़ा खटकता है दो जून की रोटी खातिर तुमने भाग्य स्वीकारा है मेरी चुप्पी ने भी मेरी किस्मत को ललकारा है अपनी एक सी नियति में भी अंतर इतना है देखें तो कण भर समझें तो पत्थर जितना है नेहा मिश्रा "प्रियम" 08/01/2025

मेरे हीरो

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                                          चित्र: Pinterest से साभार कभी - कभी कुछ शब्दों को ना जानना भी कितना अच्छा होता है ना? इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी को  "इव टीजिंग" शब्द फोन में गूगल करना पड़े। बिल्कुल उसी तरह से जैसे मैं अपने फोन में  कभी - कभी "बिच हंटिंग" जैसे शब्दों को गूगल करती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरी बिटिया अपनी ग्यारहवीं कक्षा के समाजशास्त्र विषय की किसी किताब में पढ़ने पर मुझसे आकर पूछे... "ये घरेलू हिंसा क्या होती है मां?" और मैं अपनी बिंदी ठीक करते करते ही कह दूं.. कि ये सब तो पहले के ज़माने में हुआ करती थी... ठीक उसी तरह जैसे बेपरवाह होकर मेरी मां  मुझे सती प्रथा के बारे में बता रही थी मैं चाहती हूं कि मेरे बेटे को दहेज़ शब्द का अर्थ जान कर ज़ोर से हंसी आ जाये और गुस्सा भी  फ़िर अजीब सा मुंह बनाकर कहे "क्या पागल लोग होते थे ना पहले!" और मैं एक स्फीत मुस्कान लिये गर्व से उनके पिता की तरफ़ देख कर कहूं "हां, लेकिन तुम्हारे पिता उ...

गोवा- भाग एक

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आप लोगों ने कश्मीर फाइल्स देखी है? मैंने नहीं देखी... इतिहास पहले पढ़ रखा था सो देखने की हिम्मत नहीं हुई। ज़रा सोचिये जो हमसे देखी न जा सकी, वो सही कैसे गई होगी। अच्छा अब एक प्रश्न का उत्तर और दीजिये... जीवन में कभी गोवा जानें का सोचा है? दिल्ली- एन.सी.आर. में रहने वाला अमूमन प्रत्येक युवा ऐसी योजनाएं बनाता ही है। अच्छा अब सच-सच बताईयेगा कि "गोवा" शब्द पढ़ते ही आपकी आँखों में कौन से बिंब बनें थे? कोई बात नहीं। इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। कश्मीर का नाम सुन कर कौन सा भला किसी की आँखों में कश्यप ऋषि, शिव-शारदा, मार्तंड मन्दिर, शैव संप्रदाय, लल्ल दद्द, ललितादित्य मुक्तापीड, राजा अनंत, मंत्री सूय व रानी दिद्दा जिनकी लोकप्रियता के कारण ही संभवत: उत्तर भारत में बड़ी बहन को दीदी कहने का चलन प्रारम्भ हुआ का बिंब दिखता है। ऐसे में यदि गोवा का नाम पढ़ कर तालू पर वहाँ की "फेनी (लोकल शराब" के स्वाद की कल्पना चिपक जाती है और आँखों में वहाँ के बीच और गोरी चमड़ी वाली अर्ध नग्न स्त्रियों की तस्वीर तो कोई क्या ही कह सकता है। खैर कोई कहे न कहे मैं तो कहूँगी....  कहूँगी कि...