मेरे हीरो
चित्र: Pinterest से साभार
कभी - कभी
कुछ शब्दों को ना जानना भी
कितना अच्छा होता है ना?
इसलिए मैं चाहती हूं
कि मेरी बेटी को
"इव टीजिंग" शब्द
फोन में गूगल करना पड़े।
बिल्कुल उसी तरह से
जैसे मैं अपने फोन में
कभी - कभी "बिच हंटिंग"
जैसे शब्दों को गूगल करती हूं।
मैं चाहती हूं कि मेरी बिटिया
अपनी ग्यारहवीं कक्षा के
समाजशास्त्र विषय की किसी किताब
में पढ़ने पर मुझसे आकर पूछे...
"ये घरेलू हिंसा क्या होती है मां?"
और मैं अपनी बिंदी ठीक करते करते ही कह दूं..
कि ये सब तो पहले के ज़माने में हुआ करती थी...
ठीक उसी तरह जैसे बेपरवाह होकर मेरी मां
मुझे सती प्रथा के बारे में बता रही थी
मैं चाहती हूं कि मेरे बेटे को
दहेज़ शब्द का अर्थ जान कर
ज़ोर से हंसी आ जाये और गुस्सा भी
फ़िर अजीब सा मुंह बनाकर कहे
"क्या पागल लोग होते थे ना पहले!"
और मैं एक स्फीत मुस्कान लिये
गर्व से उनके पिता की तरफ़ देख कर कहूं
"हां, लेकिन तुम्हारे पिता उस ज़माने में भी हीरो थे!"
- नेहा मिश्रा " प्रियम"
Bahut khoob
ReplyDeleteJii, shukriya 😊
DeleteSundar kavita
ReplyDeleteM lucky ,mere in laws ne bhi dahej ni liya ....
Shukriya Didii 😊
DeleteKash! इस मामले में सभी लड़कियों की किस्मत आप जैसी हो!
Very nice , dahez jaisi kupratha ko jad se hatana hoga
ReplyDeleteJiii, शुक्रिया 😊
Deleteहां! बिल्कुल 🙌🙌🙌
Very nice..👍🏻
ReplyDeleteजी, शुक्रिया 🌸
DeleteLajwab mam
ReplyDeleteजी, शुक्रिया 💐
DeleteBahut Sunder
ReplyDeleteJii, shukriya 💐
DeleteWaah, maine yah kavita apni patni ko sunai, uske ankhon me ansu aa agye. Thanks for this beautiful poem Neha ji.
ReplyDeleteइतनी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिये उन्हें धन्यवाद कहियेगा। उन्हें पढ़वाने तथा उनके भाव सांझा करने के लिये आभार आपका। 🙏
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