पिंजरे


तुम्हारी आँखों में सपने हैं ऊँची उड़ानों के
देखें तो मैंने भी हैं ख़ाब आसमानों के

तुम्हारे पर उड़ने को बेकरार मगर बेकार हैं
मेरे हौंसलों की जमीन में भी पड़ चुकी दरार है

तुम्हारी आत्मा पर अपनाइयत् की चोट है
और इधर मेरी किस्मत की नीयत में भी खोट है

तुम बंधन में जन्मी तुम्हें बंधन में सुख मिलता है
मुझ शाहीन की आँखों में ये पिंजरा बड़ा खटकता है

दो जून की रोटी खातिर तुमने भाग्य स्वीकारा है
मेरी चुप्पी ने भी मेरी किस्मत को ललकारा है

अपनी एक सी नियति में भी अंतर इतना है
देखें तो कण भर समझें तो पत्थर जितना है

नेहा मिश्रा "प्रियम"
08/01/2025

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